जम्मू कश्मीर घाटी की कमान दो शीर्ष महिलाओं के हाथ
0 छत्तीसगढ़ की आईपीएस पीडी नित्य व जम्मू की डॉ. सय्यद सेहरिश असगर को रास आया चुनौतीभरा सफर
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारो… दुष्यंत कुमार की ये कविता नि:संदेह आईपीएस पीडी नित्या व आईएएस डॉ. सय्यद सेहरिश असगर जैसी शख्सियत को जेहन में रखकर गढ़ी होगी।
इन दिनों जम्मू कश्मीर के हालातों से पूरा देश वाकिफ है, ऐसे में संवेदनशील परिस्थिती में अपनी सुझबूझ पीडी नित्या न सिर्फ अपना दायित्व संभाल रही है, बल्कि वे हर तरह के चुनौतियों को स्वीकारने तैयार भी है। आपको बता दें कि घाटी में नित्या व असगर के रूप में सिर्फ दो ही शीर्ष महिला अधिकारी कमान थामे हुए हैं। हालांकि इनकी तैनाती भी हाल ही में हुई है। बाकी की सभी शीर्ष महिला अधिकारी या तो जम्मू रीजन में या फिर लद्दाख में पदस्थ हैं।
मूलत: छत्तीसगढ़ के दुर्ग निवासी आईपीएस अधिकारी पीडी नित्या रायपुर एनआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उनकी पहली नौकरी चंद्रपुर में सिमेंट फैक्टी में लगी थी, लेकिन वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई, क्योंकि उन्हें उस नौकरी में कोई चुनौती नजर नहीं आई, लिहाजा उन्होंने वहीं से युपीएससी की तैयारी कर 2016 में आईपीएस में चयतनित हुई। श्रीनगर पोस्टिंग का जिम्मा उन्हें हाल ही में मिला।
चुनौतीभरा सफर चुना अपनी मर्जी से
28 वर्षीय महिला अधिकारी नित्या के लिए जम्मू कश्मीर में हालातों से जुझना इतना आसान नहीं है, और वह भी उस वक्त जब जुम्मा-जुम्मा अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश बना। खैर, इस युवा महिला अधिकारी ने तो अपनी मर्जी से ही ये चुनौतीभरा सफर चुना, लेकिन वे मानती हैं कि छत्तीसगढ़ में एक सीमेंट कंपनी के मैनजर की जिम्मेदारी निभाने की तुलना में घाटी के हालातों को संभालना कई गुना ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। वे कहनी हैं कि मुझे चुनौती पसंद है। उनके पिता दुर्ग रेलवे में थे और मां हाउस वाईफ है।
छत्तीसगढ़ की जीवनशैली से है भिन्न
नेहरू पार्क के उप विभागीय पुलिस अधिकारी के पद पर तैनात नित्या कहती हैं, मैं छत्तीसगढ के दुर्ग से हूं, जहां हमेशा शांति रही है, लेकिन मुझे चुनौतियां पसंद है। मुझे आम नागरिकों की सुरक्षा के साथ ही वीवीआईपी की सुरक्षा का भी ध्यान रखना पड़ता है। निश्चित तौर पर यह सब छत्तीसगढ़ की जीवनशैली से अभिन्न है। नित्या को सड़कों पर आए दिन हालातों से विरूद्ध लोगों से भी दो चार होना पड़ता है। इनमें फुटकर व्यापारियों से लेकर स्थानीय निजी स्कूलों के शिक्षक तक शामिल होते हैं। हालांकि बीटेक कर चुकीं एक ट्रेंड केमिकल इंजीनियर नित्या ने घाटी के हालातों की केमिस्ट्री से निपटना भी सीख लिया है। वे हिंदी के साथ ही कश्मीरी भाषा भी धारा प्रवाह के साथ बोलती हैं, और साथ ही उनकी मातृभाषा तेलुगु भी बोल लेती हैं।
नजरबंद नेताओं-वीआईपी की निगरानी का जिम्मा
यहां उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं है। उन्हें राम मुंशी बाग और हरवन दाग्ची गांव के बीच निगरानी की जिम्मेदारी दी गई। करीब 40 किमी में फैला ये इलाका संवेदनशील है। इस इलाके में न केवल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र डल झील ही है, बल्कि राज्यपाल आवास और वो इमारत भी है, जहां जम्मू कश्मीर के नेताओं व वीआईपी शख्सियतों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिहाज से नजरबंद किया गया है।
क्राइसिस मैनेजमेंट में जुटीं एक और महिला आईएएस
नित्या की तरह ही एक और महिला अधिकारी है, जो इन दिनों घाटी में लोगों की समस्याओं को हल कर एक तरह से क्राइसिस मैनेजमेंट का काम कर रही है। इनका नाम है डॉ. सय्यद सेहरिश असगर। 2013 बैच की इस आईएएस अधिकारी को जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने के महज चार दिन पहले ही श्रीनगर में जम्मू कश्मीर प्रशासन के सूचना निदेशक के पद पर भेजा गया। वैसे तो उनका काम लोगों को सरकार की योजनाओं के बारे में बताना है, लेकिन यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पिछले 8 दिन से उनके काम ने क्राइसिस मैनेजमेंट की शक्ल ले ली है। वे स्थानीय लोगों की सैकड़ों किमी दूरे रह रहे उनके परिजन से फोन पर बात करा रही हैं। असगर एमबीबीएस की पढ़ाई कर जम्मू में प्रैक्टिस कर रही थीं, लेकिन यह छोड़ उन्होंने आईएएस बनने की ठानी। अब वे कहती हैं कि पहले मैं मरीजों का इलाज करती थी लेकिन आज घाटी के हालात कुछ और हैं। ऐसे हालातों में सख्ती के साथ ही लोगों को भावनात्मक सपोर्ट देने की जरूरत है।