वॉशिंगटन, 20 अगस्त। Bilkis Bano Rape Case : अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) ने गुजरात के बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले के 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। आयोग ने कहा कि उम्रकैद की सजा पाए दोषियों की जल्दी रिहाई को अनुचित व न्याय का उपहास है।
यूएससीआईआरएफ के उपाध्यक्ष अब्राहम कूपर ने एक बयान जारी रिहाई के फैसले की निंदा की है। वहीं, आयोग के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने कहा कि यह फैसला धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में शामिल लोगों को सजा से मुक्त करने के एक पैटर्न का हिस्सा है।
बता दें, 2002 में हुए गोधरा कांड (Bilkis Bano Rape Case) के बाद गुजरात में हुए दंगों के दौरान गर्भवती बिलकिस बानो के सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसकी पांच साल की बेटी व 13 अन्य की हत्या हुई थी। इस मामले में मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को 2008 में हत्या व सामूहिक दुष्कर्म का दोषी मानकर उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
भारत में सजा से मुक्ति का यह तरीका : श्नेक
अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने श्नेक के हवाले से कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के जिम्मेदारों को सजा दिलाने में तंत्र नाकाम रहा है। उन्होंने इसे भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में लिप्त लोगों को सजा से मुक्ति दिलाने का एक तरीका करार दिया।
गुजरात सरकार की हो रही आलोचना
उधर, बिलकिस बानो केस (Bilkis Bano Rape Case) के दोषियों की रिहाई के फैसले को लेकर गुजरात सरकार की कड़ी आलोचना हो रही है। हालांकि, यह फैसला राज्य सरकार की 1992 की कैदियों की जल्दी रिहाई नीति के तहत लिया है। इस बीच, गुजरात सरकार के एक अधिकारी का कहना है कि हत्या व सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को रिहाई की संशोधित नीति के तहत जेल से छोड़ा नहीं जा सकता है। संशोधित नीति 2008 से ही लागू हुई, उसी वक्त इन दोषियों को सजा सुनाई गई थी।