रायपुर, 27 अगस्त। POLA FESTIVAL : छत्तीसगढ़ की संस्कृति में तीज- त्योहारों का अपना अलग महत्व है। इन सभी त्योहारों के पीछे यहां की संस्कृति और समाज के अलग अलग स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। इन्हीं में से एक है पोला का त्यौहार।
प्राचीन काल से ही भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि के दिन इस त्यौहार को मनाने की परंपरा चली आ रही है। यह “पर्व” कृषकों के लिए खेती- किसानी में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बैलों के महत्व को दर्शाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
इसी दिन कान्हा ने किया था पोलासूर राक्षस का संहार
पुराणों के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान विष्णु जब कान्हा के रूप में धरती में जनम लिए, तब से कंस उन्हें मारने के तरह तरह के प्रयास करता रहा। एक दिन यशोदा- वासुदेव के संग रह रहे कन्हैया को मारने पोलासुर नामक राक्षस को भेजा। राक्षस ने आकर उन्हें मारने का प्रयास किया, लेकिन कान्हा ने अपनी लीला से बाल रूप में ही उसका वध कर दिया और आसपास के लोगों को अचंभित कर दिया। वह दिन भादो माह की अमावस्या का दिन था। इसलिए इस दिन को पोला के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष तौर पर बच्चों के लिए स्नेह और उल्लास का दिन होता है।
पशुधन की पूजा का पर्व
हमारा भारत और मुख्य तौर पर छत्तीसगढ़ प्रदेश अपनी कृषि संस्कृति के रूप में पहचान रखते हैं। यहां के लोगों की आय का मुख्य स्रोत कृषि उत्पाद है। इसलिए इस दिन किसान पशुओं की पूजा- अर्चना कर उनको धन्यवाद देते हुए पोला का त्यौहार मनाते हैं।
छत्तीसगढ़ के तीज- त्यौहारों और संस्कृति का निराला स्वरूप
छत्तीसगढ़ के तीज- त्यौहारों और संस्कृति का स्वरूप ही निराला है। प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से स्थानीय पर्व त्योहारों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। स्थानीय त्योहारों पर शासकीय अवकाश होने के साथ-साथ व्यापक स्तर पर सार्वजनिक रूप से इन त्योहारों को मनाने की भी शुरुआत हुई है। इससे लोगों में अपनी संस्कृति और उत्सव का उल्लास बढ़ा है। सरकार के प्रयासों से अब छत्तीसगढ़ की परंपरा और संस्कृति को देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी शानदार पहचान मिल रही है। निश्चित ही ये हर छत्तीसगढ़िया के लिए गौरव की बात है।
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पोला त्योहार मनाने के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती हैं। पोला पर्व पर किसानों को खेत जाने की मनाही होती है। पोला पर्व को लेकर राजधानी रायपुर के बाजार में मिट्टी के बर्तनों और नांदिया बैला की बिक्री जमकर हुई है। लोगों ने अपने बच्चों के लिए मिट्टी से बने बर्तन भी खरीदे।
नंदिया बैला और जाता पोरा के खिलौने
खेती-किसानी से जुड़े इस त्यौहार में किसान पोला के दिन खेत नहीं जाते और पशुधन की पूजा करते हैं। वहीं बच्चे मिट्टी के बने खिलौनों से खेलते हैं। लड़के जहां पोला के दिन नंदिया बैला चलाते हैं, तो वहीं लड़कियां जाता पोरा से खेलती हैं।
नंदी बैल के प्रति आस्था प्रकट करने की परंपरा
शाम के वक्त गांव की युवतियां अपनी सहेलियों के साथ गांव के बाहर मैदान या चौराहों पर (जहां नंदी बैल या साहडा देव की प्रतिमा स्थापित रहती है) पोरा पटकने जाते हैं। इस परंपरा में सभी अपने-अपने घरों से एक-एक मिट्टी के खिलौने को एक निर्धारित स्थान पर पटककर-फोड़ते हैं। जो कि नंदी बैल के प्रति आस्था प्रकट करने की परंपरा है। युवा लोग कबड्डी, खोखो आदि खेलते मनोरंजन करते हैं।
पोला त्यौहार में बनते हैं ये पकवान
छत्तीसगढ़ में इस लोक पर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई जैसे कई छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों को सबसे पहले बैलों की पूजा कर भोग लगाया जाता है। इसके बाद घर के सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तन में पूजा करते समय भरते हैं, ताकि बर्तन हमेश अन्न से भरा रहे।