चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज हुआ अब सरकारी, विधानसभा में विधेयक पारित, विपक्ष की नाराजगी बरकरार

रायपुर, 29 जुलाई। विधानसभा के मानसून सत्र के चौथे दिन छत्तीसगढ़ चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कालेज अधिग्रहण विधेयक 2021 पारित हो गया। विधेयक के विरोध में बीजेपी विधायकों ने वॉकआउट किया। इसके पहले बीजेपी सदस्य बृजमोहन अग्रवाल के संशोधन पर मत विभाजन मांगा गया, जिसमें संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में 16 वोट पड़े और प्रस्ताव के विरोध में 56 वोट पड़े। इस दौरान जनता कांग्रेस जोगी दो भागों में बंटी नजर आई। उनके 2 सदस्य बिल के पक्ष में और 2 विपक्ष में रहे। इसके साथ ही विधेयक सदन में ध्वनिमत से पारित हो गया।

उल्लेखनीय है कि सदन में बुधवार को भाजपा विधायकों की आपत्ति के बावजूद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने छत्तीसगढ़ चंदूलाल चंद्राकर स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय दुर्ग (अधिग्रहण) विधेयक 2021 पेश कर दिया था। दरअसल बीजेपी विधायकों ने भारसाधक मंत्री के स्थान पर संसदीय कार्यमंत्री के विधेयक पेश करने पर आपत्ति जताई थी। बृजमोहन अग्रवाल ने मूल विधेयक विधि के विरुद्ध लाये जाने का विरोध किया था। वहीं अजय चंद्राकर ने इस बिल को संशोधित विधेयक के बजाय मूल विधेयक कहा था।

स्वास्थ्य मंत्री ने दिलाया भरोसा

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने विधानसभा में विधेयक 2021 पर चर्चा के दौरान कहा कि मैं ये भरोसा दिलाता हूँ कि इस अधिग्रहण के बाद किसी की लेनदारी-देनदारी में दिक्कत नहीं होगी।

काला कानून पारित: भाजपा

विपक्ष ने विधेयक के दो संसोधन लाये थे। जिसमे हॉस्पिटल में कार्यरत कर्मचारियों का भी सरकारी करण किया जाए और हॉस्पिटल की देनदारी को लेकर सरकार स्थिति स्पष्ट करें। दोनों संशोधन विधेयक अस्वीकार किए गए मत विभाजन के बाद विपक्ष का संशोधन खारिज हो गया। साथ ही कर्ज के बोझ में डूबे हुए चंदूलाल चंद्राकार हॉस्पिटल को लिए जाने पर विपक्ष ने घोर आपत्ति जताई। 16 के मुकाबले में 56 मतों से अधिग्रहण बिल सर्वसम्मति से पास हो गया। जिसके बाद विपक्ष ने सदन के भीतर ही सरकार के खिलाफ जमकर नारे लगाए और पारित बिल को काला कानून बताते हुए सदन से वॉक आउट किया।

प्रदेश सरकार की दलील पर भाजपा का कटाक्ष

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा है कि प्रदेश के चंदूलाल चंद्राकर स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के अधिग्रहण की औपचारिकता पूरी होने से पहले ही अनुपूरक बज़ट में 41 करोड़ रुपए का प्रावधान प्रदेश सरकार की बदनीयती को ज़ाहिर करने के लिए पर्याप्त है। उक्त महाविद्यालय के जो डायरेक्टर हैं। साय ने कहा कि उक्त महाविद्यालय को लेकर लगातार विवाद की स्थिति बनी हुई है और जो महाविद्यालय भारी कर्ज़ में डूबा हो, लगातार नुक़सान में हो और जिसकी मान्यता सन 2017 से मेडिकल काऊंसिल ऑफ़ इंडिया ने धोखाधड़ी का गंभीर आरोप लगाकर रद्द कर रखी हो, उसका सरकारी ख़ज़ाने की राशि से अधिग्रहण करने का फैसला राज्य सरकार ने लेकर अपने एक रिश्तेदार परिवार के आर्थिक हितों को साधने का काम किया है।

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